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वा॒वृ॒धा॒नो म॒रुत्स॒खेन्द्रो॒ वि वृ॒त्रमै॑रयत् । सृ॒जन्त्स॑मु॒द्रिया॑ अ॒पः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vāvṛdhāno marutsakhendro vi vṛtram airayat | sṛjan samudriyā apaḥ ||

पद पाठ

व॒वृ॒धा॒नः । म॒रुत्ऽस॑खा । इन्द्रः॑ । वि । वृ॒त्रम् । ऐ॒र॒य॒त् । सृ॒जन् । स॒मु॒द्रियाः॑ । अ॒पः ॥ ८.७६.३

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:76» मन्त्र:3 | अष्टक:6» अध्याय:5» वर्ग:27» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:8» मन्त्र:3


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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) हे सर्वशक्ते ! (यथा) जैसे (पितुः) पिता का पालन पुत्र जानता है, वैसे (वयं) हम लोग (पुरा) बहुत दिनों से (ते) तुम्हारा (अवसः) रक्षण और साहाय्य (विद्म) जानते हैं, (अध) इस कारण (ते) तुमसे (सुम्नं) सुख की (ईमहे) याचना करते हैं ॥१६॥
भावार्थभाषाः - हे ईश ! जिस हेतु आपका सहाय बहुत दिनों से हम लोग जानते हैं, इस हेतु आपसे उसकी अपेक्षा करते हैं ॥१६॥
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शिव शंकर शर्मा

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! यथा पितुः पालनं पुत्रो जानाति तथा वयमपि। पुरा=बहुकालात्। ते=तव। अवसः=रक्षणम्। विद्म। अव। तस्मात्। ते। सुम्नं=सुखम्। ईमहे=याचामहे ॥१६॥